हमारी गैलेक्सी के केंद्रीय महाकाय ब्लैकहोल का चुंबकीय भवंर

हमारी गैलेक्सी के केंद्रीय महाकाय ब्लैकहोल का चुंबकीय भवंर

हमारी गैलेक्सी के केंद्रीय महाकाय ब्लैकहोल का चुंबकीय भवंर

ब्लैकहोल यूँ कहने को तो काले अंतरिक्ष में दिखने ही नहीं चाहिये क्यों की न तो वो रोशनी पैदा करते हैं और जो रोशनी उन तक पहुँचती भी है उसे भी ब्लैक होल को सोख कर हज़म कर लेते हैं। पर हाल के दो तीन दशकों के पर्यवेक्षणोंऔर खोज से महाभारी ब्लैक होल अपनी क्लासिकल छवि के उलट विश्व के सबसे चमकीले पिंड साबित होरहे हैं। गैलेक्सियों के केंद्र में स्थित उच्चाद्रव्यमान वाले ब्लैक होल तो यों गैस और धूल में छिपे रहते हैं पर रेडियो दूरबीन की मदद से देखे जा सकते हैं।

इन महाकाय गैलेक्टिक ब्लैकहोल की सबसे पहले खोज आज से लगभग 75 साल पहले विश्व के सुदूर अज्ञात रेडियो स्रोत की तरह हुई थी। प्रकाशीय दूरबीन से वहाँ पर देखने पर फीके तारेनुमा रचना नजर आई। पर असंभव सी लगने वाली दूरी पर पाये गये कि उतनी डोर के तारे तो दिखने ही नहीं चाहिए। इस लिये इन्हें क्वासीस्टेलर/‘क्वासर’ यानी की परातारकीय पिंड कहा गया। कुछ खगोलवैज्ञानिक इन्हें काल्पनिक व्हाइटहोल के नमूने कह कर व्याख्या करने लगे। इनकी असलियत को पहली बार हबलस्पेस टेलिस्कोप ने उजागर किया जब उसके द्वारा ली गयीं तस्वीरों में कुछ क्वासर गैलेक्सियों के केंद्र में नज़र आये। ऐसी ही कुछ गैलेक्सियों के केंद्र से बहुत तेज गतिवाले गैस के ‘फ़व्वारे’ फुटते भी नज़र आये। इनको सक्रिय गैलेक्टिक नाभिक बताया गया। कुछ ही समय ये स्थापित होने लगा की ये दरअसल ऐक्टिव गैलेक्सी के केंद्र में स्थित महाकाय ब्लैक होल हैं।

इस धारणा को साबित करने के लिए रेडियो दूरबीनों पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने इन गैलेक्टिक ब्लैक होलोन की तस्वीर उतारने की ठानी। इस काम में दो चुनौतियाँ थीं, पहली तो ये कि महाभारी ब्लैकहोल गैलेक्सी के केंद्र में मौजूद धूल गैस के पर्दे में छुपे हुए हैं। इन्हें सीधे सीधे ‘देखना’ नामुमकिन है। इनकी मौजूदगी का पता गैलेक्सी के केंद्र के आस पास घूम रहे तारों की असंभव लगती तेज गति से घूमने से हुआ। इन तारो की केन्द्र से दूरी और रफ़्तार से गैलेक्सी के केंद्र में मौजूद वस्तु के आकार और भार की गणनाकी जा सकती थी। इसके हिसाब से हमारे विश्व की लगभग सभी गैलेक्सियों के केंद्र में हमारे सूर्या से भी लाखों से करोणों गुना वजनी चीज मौजूद है जिसका आकार हमारे सौरमंडल से भी छोटा है। इससे ये तो तय है कि यह एक महाकाय ब्लैकहोल ही होना चाहिये। क्योंकि इतने घनत्व की वस्तु का गुरुत्वाकर्षण इतना हो जाएगा 120 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट की दूरी आम पर उसका अपना प्रकाश भी बाहर नहीं निकल पाएगा।

अगर ब्लैकहोल अलग से अकेले होते तो इसे देखना बहुत मुश्किल होता, चूँकि तारे जिनसे अमूमन ब्लैकहोल बनाते है शायद ही कभी अकेले होते हैं। तो इन जुड़वां या अधिक तटों के एक के ब्लैक होल बनाने पर दूसरे तारे उसकी परिक्रमा जारी रखेंगे और यह भी संभव है कि उन्मे से एक या अधिक तारों की गैस ब्लैक होल के गुरुत्व से बंधी उसमे गिरने लगे,ऐसी गैस ब्लैकहोल के चारों ओर एक भँवर जैसा बना लेती है, जिसमें गिरता हुई गैसें गर्म हो कर एक्सरे जैस ऊर्जावान प्रकाश विकिरण छोड़ने लगती हैं जिसका वजह से ब्लैकहोल को देख पाना संभव हो सकता था। लेकिन ये क्वासर हमारे इतनी दूरी पर स्थित हैं कि इनसे आने वाला एक्सरे प्रकाश की तरंगें स्पेस के एक्सपेंशन के चलते फैल कर रेडियोवेव में परिवर्तित हो चुकीं होती हैं। साथ ही ज़्यादा दूरी के चलते इनकी तीव्रता भीं चूक चुकी होती है। इस समस्या से पार पाने के लिए दुनियाभर के अलग अलग महाद्वीपों मैं मौजूद रेडियो टेलिस्कोप को वर्चुअल रूप से, अपरचर सिंथेसिस की तकनीकी जोड़ कर एक पृथ्वी के दायरे के आकार का विशाल रेडियो टेलिस्कोप बनाया गया जिसका नाम रखा इवेंट होराइजन टेलिस्कोप।

इवेंट होराइजन टेलीस्कोपेका पहला टारगेट था M87 गैलेक्सी के केंद्र में मौजूद महाकाय गैलेक्टिक ब्लैकहोल और दूसरा हमारी ख़ुद की गैलेक्सी के केंद्र में मौजूद Sagittarius A* black hole. जब सन् 2006 से शुरू करके डेटा इकट्ठा होना शुरू हुआ तब से कुछ और भी रेडियो टेलिस्कोप जुड़ गये हैं। इन सभी टेलिस्कोप से इकट्ठा किया हुआ डेटा हार्डडिस्क में सहेज कर MIT हेयस्टेक आब्जर्वेटरी और मैक्सपलैंक इंस्टिट्यूट फॉर रेडियो एस्ट्रोनॉमी में जुटाया फिर इस डेटा का आपस में मिलान कर 800 CPU वाले 40 GB/s ग्रिड कंप्यूटर पर विश्लेषण किया गया। बीच में कोरोना-19 महामारी, मौसम की मार औरआकाशीय गतिकी की बाधाओं के चलते 2020 के ऑब्जरवेशन अभियान को 2021 तक देर से हो पाया। 2019 की अप्रैल 10 को M87 ग्लैक्सी के केंद्रीय महाकाय ब्लैकहोल की तस्वीर खगोलवैज्ञानिकों ने जारी की। इस तस्वीर में पीले नारंगी रंगों की जो बालुशाही जैसी आकृति दिख रही है वह ब्लैक होल की गर्म आक्रिशन डिस्क है जो उसमें गिरती अतिगर्म गैसों बसों से निकलते रेडियो रोशनी है। ब्लैक होल इसके बीच के काले दिखाते छिद्र में छुपा है। इस ब्लैकहोल का वजन 6.5 अरब सूर्य के बराबर है पर इसका दायरा 40 अरब किलो मीटर या बीच के काले छेद से ढाई गुना छोटा है।

हमारी अपनी गैलेक्सी के ब्लैकहोल की तस्वीर यूँ तो अगस्त 2020 में जारी हो गई थी जिसमे पता चलता है यह हमसे सिर्फ़ 27,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है और M87 के ब्लैकहोल से हज़ार गुना छोटा है। अभी पिछले ही महीने मार्च में 22 तारीख़ को ब्लैक होल के आक्रिशन डिस्क के में घूमते हुए ज़बरदस्त चुंबकीय प्रभाव को उजागर करती तस्वीर सामने आयी है। ऐसा ही भवंरनुमा चुंबकीय छात्र M87 गैलेक्सी में भी देखा गया था। शायद यह समानता यह दर्शाती है की सभी ब्लैकहोलों की तरह हमारी गैलेक्सी का भी का शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र है और शायद उसके ध्रुवों से M87 जैसे उच्चवेग वाले गर्म गैसों और विकिरणों फुहारा भी छूट रहा हो।

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