अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक तारामंडल अर्थात् कांस्टेलेशन
- starscapes
- July 11, 2024
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पृथ्वी सूर्या की पारिक्रम करती है यह जानने से पहले ही आर्य भट ने यह तो जान लिया था कि आकाश के पिंडों की दो गतियाँ हैं एक गेंद जैसी गोल पृथ्वी एक दिन में एक बार अपनी धुरी पर पूरा घूम जाती है। इसी से दिन रात होते हैं और आकाश के सारे तारे ग्रह सूर्य चंद्र इत्यादि पूर्व से उग कर पश्चिम में डूब जाते हैं। दूसरी गति है जो कि सूर्य चाँद और सारे ग्रह हर रोज़, कोई तेज, कोई धीमे,
थोड़ा – ज़्यादा, पश्चिम से पूर्व की खिसकता रहता है। इसके चलते ग्रहों तथा चंद्रमा को बड़ी आसानी से तारों की पृष्ठभूमिपर खिसकते हुए देखा जा सकता है। दिन में तो सूरज रोशनी के चलते नीले चमकते आसमान में तारे तो नहीं देके जा सकते है और न ही सूर्या को पश्चिम के तारों के पास से खिसक कर पूर्व के तारों की ओर चलते ह्यूज। पर सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के बाद के तारों को
देख कर सूर्य की पृष्ठभूमि के तारों को जान सकते हैं। इसी से आकाश में सूर्य का जो आभासी मार्ग बनता है उसे इक्लिप्टिक या कांतिवृतकहते हैं। आकाश में सूरज की आभासी राह यानी की एक्लिप्टिक (कांतिवृत) पर पड़ने वाले तारों को साल में होने वाले बारह महीनों का हिसाब रखने के लिए 30 डिग्री के 12 बराबर हिस्सों में बाँट कर बारह राशियाँ निर्धारित की। इन में 7 पशु हैं, कल्पित
पशु है, एक पानी भरता पुरुष और एक महिला, दो सौतेले भाई जिनमे बेमिसाल प्यार था और एक व्यापार का उपकरण है तराज़ू। लागता है इन राशियों के आकारों की कल्पना धर्मों के उत्पत्ति से भी पुरानी है।
बारह नक्षत्र नक्षत्रों की शुरुआत आज से 4 हज़ार वर्ष पूर्व संभवतः बेबीलोन से हुई है। वहाँ से ये इजिप्ट होते रोम और सिकंदर के हमले के साथ भारत में आये। शुरू के दौर में तो इनके नामों का अनुवाद भी नहीं किया गया leo को लेय और taurus को टारी लिखा हुआ मिलता है। चारों वेदों में भारतीय नक्षत्रों का उल्लेख तो है पर इन बारह राशियों का नहीं, महाभारत में भी नहीं है और तो और आर्यभट की
आर्यभटियम में भी नहीं है। वारहमिहीर जो आर्यभट के बाद के हैं उनके साहित्य में ये बारह राशियां हैं।
पाश्चात्य सभ्यताओं ने बाक़ी नक्षत्र मंडलों को पेगन ग्रीक और रोना मिथकों के नायक, नायिका,खलनायकों, कल्पनिक और वास्तविक पशुओं के रूप में कल्पना की। अरबों, चीनियों, अमरीकी, अफ़्रीकी लोगों ने अपनी कल्पना से इन तारों के नक़्शे बनाए और नाम अपनी साहित्य पुराणों से लिये। रोचक बात ये है कि यूरोपियन पुनर्जागरण के बाद जब दक्षिणी आकाश के नक़्शे बने
तो उसके वैज्ञानिक और तकनीकी उपकरणों के नाम भी नक्षत्रों को दिये गये।
जिन सभ्यताओं ने तारों के नक़्शे जितने सटीक बनाये वह सभ्यता उतनी ही विकसित हुई। विस्तार और व्यापार पर निर्भर यायावर सभ्यताओं ने अनजान इलाक़ों में राह निर्धारण करने के लिए आकाश के गोलेपर तारो की स्थिति बहुत सटीकता से अंकित की। अंतरराष्ट्रीय यूनियन ऑफ़ एस्ट्रोनोमर्स ने आकाश में 82 कांस्ट्लेशन को मान्यता दी है जिसमें उत्तरी गोलार्द्ध आकाशीय गोलार्द्ध की और
बीस तीस डिग्री दक्षिण की राशियों के नाम यूरोपियन माइथोलॉजी से रखे। तारों के नाम अरबी नक़्शों से लिये है। बाक़ी आकाश के कांस्टेलेशन के लिये वैज्ञानिक या तकनीकी उपकरण, औजार और विश्व की दूसरी संस्कृति सभ्यताओं से नाम लिये गये हैं।
आगे इन सभी नक्षत्रो और वैज्ञानिक तारामंडलों पर विस्तार से चर्चा होगी।